अयोध्या ::- राम मंदिर के ध्वजारोहण समारोह ने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को एक मंच से कई संदेश दिए। समारोह में सर्वधर्म समाज की मौजूदगी से सामाजिक समरसता और रामराज की स्थापना की छाप छोड़ने की कोशिश की गई। रामराज से मानवता की सेवा करने का संदेश दिया गया। इसके लिए प्रभु श्रीराम का उदाहरण दिया गया कि वह भेद से नहीं बल्कि सेवा से जुड़ते रहे। रामराज से ही विकास और विकसित भारत का मंत्र भी दिया गया। समारोह की खास बात यह रही कि इसमें कोई विशिष्ट अतिथि नहीं था। सभी समाज के प्रतिनिधि आमंत्रित सदस्य के रूप में बुलाए गए थे। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभी ने सर्व समाज और सामाजिक समरसता पर जोर दिया। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने इन सभी भावों का अपने 33 मिनट के संबोधन में विस्तारपूर्वक प्रस्तुतीकरण किया। उन्होंने राम के प्रति निषादराज की मित्रता और मां शबरी की ममता का जिक्र करते हुए यह दिखाने की कोशिश की कि राम के लिए दोनों ही प्रिय थे। इस वजह से वह मर्यादा पुरुषोत्तम बने और रामराज की स्थापना हुई। यानी गरीबी, अमीरी, जाति-पाति का वह विभेद नहीं करते थे। यह संदेश देते हुए मोदी ने यह बताने की कोशिश की कि एक समृद्धशाली, शक्तिशाली और विकसित समाज की स्थापना के लिए भेद का भाव मिटाना होगा।
नाम लिए बगैर विपक्ष पर हमला
ध्वजारोहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष का नाम लिए बगैर हमला बोला। उन्होंने कहा कि आजादी तो मिली, लेकिन मानसिक आजादी नहीं मिल पाई। मानसिकता की गुलामी की जंजीरों में हम जकड़े रहे। हमने नौसेना के ध्वज से गुलामी के हर प्रतीक को हटाया। गुलामी की मानसिकता इतनी हावी हो गई कि प्रभु राम को भी काल्पनिक घोषित किया जाने लगा। अब सबमें राम और कण-कण में राम हैं। आजादी के 70 साल में देश विश्व की 11वीं अर्थव्यवस्था बन पाया, जबकि पिछले 11 साल में यह तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सफल हो गया। लोकतंत्र को विदेशों से लेने की बात स्थापित की गई, जबकि हकीकत है कि यह हमारे डीएनए में है।