अध्याय VII
संबद्धता और मान्यता
- संबद्ध कॉलेज
.- [(1) यह धारा निम्नलिखित विश्वविद्यालयों पर लागू होगी: [डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा] [यूपी अधिनियम संख्या 6 सन् 2009 द्वारा प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पूर्व यह निम्नानुसार थी:'(1) यह धारा आगरा, गोरखपुर, कानपुर और मेरठ विश्वविद्यालयों तथा ऐसे अन्य विश्वविद्यालयों (लखनऊ विश्वविद्यालय नहीं) पर लागू होगी, जिन्हें राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट करे।] , दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर, छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय, बरेली, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद, और ऐसे अन्य विश्वविद्यालय (लखनऊ विश्वविद्यालय नहीं) जिन्हें राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट करे]।
(2)
कार्यकारी परिषद, राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से किसी ऐसे महाविद्यालय को, जो संबद्धता की ऐसी शर्तों को पूरा करता हो, जो विहित की जाएं, संबद्धता के विशेषाधिकार दे सकेगी या पहले से संबद्ध या उपधारा ( 8 ) के उपबंधों के अधीन किसी महाविद्यालय के विशेषाधिकारों में वृद्धि कर सकेगी, ऐसे किसी विशेषाधिकार को वापस ले सकेगी या उसमें कटौती कर सकेगी:
[परन्तु यदि राज्य सरकार की राय में कोई महाविद्यालय संबद्धता की शर्तों को पर्याप्त रूप से पूरा करता है, तो राज्य सरकार उस महाविद्यालय को संबद्धता प्रदान करने की मंजूरी दे सकती है या अध्ययन के पाठ्यक्रम के एक सत्र के लिए विशिष्ट विषयों में उसके विशेषाधिकारों को ऐसे नियमों और शर्तों पर बढ़ा सकती है, जैसा वह उचित समझे:
परन्तु यह और कि जब तक महाविद्यालय द्वारा सम्बद्धता की सभी विहित शर्तें पूरी नहीं कर ली जाती हैं, तब तक वह उस अध्ययन पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में, जिसके लिए पूर्वगामी परन्तुक के अधीन सम्बद्धता प्रदान की गई है, ऐसे सम्बद्धता के प्रारंभ होने की तारीख से एक वर्ष के पश्चात् किसी छात्र को प्रवेश नहीं देगा।]
(3)
किसी सम्बद्ध महाविद्यालय के लिए उसी स्थानीय क्षेत्र में स्थित किसी अन्य सम्बद्ध महाविद्यालय या विश्वविद्यालय के साथ शिक्षण या अनुसंधान के कार्य में सहयोग हेतु व्यवस्था करना वैध होगा।
(4)
इस अधिनियम द्वारा उपबंधित के सिवाय, किसी संबद्ध महाविद्यालय का प्रबंधन महाविद्यालय के कार्यों का प्रबंधन और नियंत्रण करने के लिए स्वतंत्र होगा तथा इसके रखरखाव और देखभाल के लिए जिम्मेदार होगा, और इसका प्रधानाचार्य अपने छात्रों के अनुशासन और अपने कर्मचारियों पर अधीक्षण और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होगा।
(5)
प्रत्येक सम्बद्ध महाविद्यालय ऐसी रिपोर्ट, विवरणियां और अन्य विवरण प्रस्तुत करेगा, जो कार्यकारी परिषद या कुलपति मांगें।
(6)
कार्यकारी परिषद प्रत्येक सम्बद्ध महाविद्यालय का समय-समय पर पांच वर्ष से अनधिक के अंतराल पर उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा निरीक्षण कराएगी तथा निरीक्षण की रिपोर्ट कार्यकारी परिषद को दी जाएगी।
(7)
कार्यकारी परिषद् इस प्रकार निरीक्षित किसी सम्बद्ध महाविद्यालय को निर्देश दे सकेगी कि वह ऐसी कार्रवाई करे जो उसे आवश्यक प्रतीत हो, ऐसी अवधि के भीतर जो विनिर्दिष्ट की जाए।
(8)
किसी महाविद्यालय के संबद्धता के विशेषाधिकार, जो उपधारा (7) के अधीन कार्यकारी परिषद के किसी निर्देश का अनुपालन करने में या संबद्धता की शर्तों को पूरा करने में असफल रहता है, महाविद्यालय के प्रबंधन से रिपोर्ट प्राप्त करने के पश्चात् और कुलाधिपति की पूर्व मंजूरी से, कार्यकारी परिषद द्वारा परिनियमों के उपबंधों के अनुसार वापस लिए जा सकते हैं या उनमें कटौती की जा सकती है।
(9)
[उपधारा (2) और (8) में किसी बात के होते हुए भी, यदि किसी सम्बद्ध महाविद्यालय का प्रबन्धतंत्र सम्बद्धता की शर्तों को पूरा करने में असफल रहता है, तो [राज्य सरकार] [उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 5 सन् 1977 द्वारा अन्तःस्थापित] प्रबन्धतंत्र और कुलपति से रिपोर्ट प्राप्त करने के पश्चात् सम्बद्धता के विशेषाधिकारों को वापस ले सकती है या उनमें कटौती कर सकती है।]
(10)
[इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, कोई महाविद्यालय, जिसे उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारम्भ होने से पूर्व किसी विश्वविद्यालय से विशिष्ट विषयों में विनिर्दिष्ट अवधि के लिए सम्बद्धता प्रदान की जा चुकी है, उस अध्ययन पाठ्यक्रम को जारी रखने का हकदार होगा जिसके लिए प्रवेश पहले ही हो चुके हैं, किन्तु वह उपधारा (2) के अधीन सम्बद्धता प्राप्त किए बिना ऐसे अध्ययन पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में किसी छात्र को प्रवेश नहीं देगा।] [उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 1 सन् 2004 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित (11.7.2003 से प्रभावी)।]
- संबद्ध कॉलेज
.- [(1) यह धारा लखनऊ विश्वविद्यालय पर लागू होगी] [उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 28 सन् 2006 द्वारा प्रतिस्थापित। ]
(2)
संबद्ध महाविद्यालय वे होंगे जिन्हें संविधि द्वारा नामित किया जाएगा।
(3)
किसी सहबद्ध महाविद्यालय के लिए किसी अन्य सहबद्ध महाविद्यालय या महाविद्यालयों या विश्वविद्यालय के साथ शिक्षण कार्य में सहयोग हेतु व्यवस्था करना वैध होगा।
(4)
किसी सहबद्ध महाविद्यालय की मान्यता की शर्तें परिनियमों द्वारा निर्धारित की जाएंगी या कार्यकारी परिषद द्वारा अधिरोपित की जाएंगी, किन्तु कोई भी सहबद्ध महाविद्यालय राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना स्नातकोत्तर उपाधियों के लिए शिक्षा प्रदान करने के लिए प्राधिकृत नहीं होगा ।
बशर्ते कि यदि किसी सहबद्ध महाविद्यालय को स्नातकोत्तर उपाधियों के लिए शिक्षा प्रदान करने हेतु मान्यता देने से मना कर दिया जाता है, तो ऐसे महाविद्यालय को राज्य सरकार के अनुमोदन से धारा 37 में निर्दिष्ट किसी विश्वविद्यालय द्वारा संबद्धता प्रदान की जा सकेगी , धारा 5 में किसी बात के होते हुए भी, और उसके फलस्वरूप ऐसा महाविद्यालय सहबद्ध महाविद्यालय नहीं रह जाएगा।
(5)
इस अधिनियम द्वारा उपबंधित के सिवाय, किसी सहबद्ध महाविद्यालय का प्रबंध, महाविद्यालय के कार्यों का प्रबंध और नियंत्रण करने के लिए स्वतंत्र होगा तथा उसके रखरखाव और देखरेख के लिए उत्तरदायी होगा। ऐसे महाविद्यालय का प्रधानाचार्य अपने छात्रों के अनुशासन और अपने कर्मचारियों के अधीक्षण और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी होगा।
(6)
कार्यकारी परिषद प्रत्येक सहबद्ध महाविद्यालय का समय-समय पर तीन वर्ष से अनधिक अंतराल पर इस निमित्त उसके द्वारा प्राधिकृत एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा निरीक्षण कराएगी तथा निरीक्षण की रिपोर्ट कार्यकारी परिषद को दी जाएगी।
(7)
किसी सहबद्ध महाविद्यालय की मान्यता, राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से, कार्यकारी परिषद द्वारा वापस ली जा सकेगी, यदि प्रबंधतंत्र द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर विचार करने के पश्चात् यह समाधान हो जाए कि उसने अपनी मान्यता की शर्तों को पूरा करना बंद कर दिया है या वह इस अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों के पालन में या कार्यकारी परिषद द्वारा इंगित अपने कार्य में किसी त्रुटि को दूर करने में चूक कर रहा है।
(8)
[इस धारा या धारा 5 में किसी बात के होते हुए भी, किसी विश्वविद्यालय के क्षेत्र में स्थित कोई सहयुक्त महाविद्यालय, जिस पर यह धारा लागू होती है, ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त जारी किये जायें, किसी विश्वविद्यालय द्वारा सम्बद्धता के विशेषाधिकारों में प्रवेश पा सकेगा, जिस पर धारा 37 लागू होती है।] [उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 19 सन् 1987 द्वारा प्रतिस्थापित।]
- प्रबंधन की सदस्यता के लिए अयोग्यता
.- कोई व्यक्ति किसी सम्बद्ध या सहयुक्त महाविद्यालय (राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा अनन्य रूप से संचालित महाविद्यालय को छोड़कर) के प्रबंध का सदस्य चुने जाने और होने के लिए निरर्हित होगा, यदि वह या उसका संबंधी ऐसे महाविद्यालय में या उसके लिए किसी कार्य के लिए कोई पारिश्रमिक या ऐसे महाविद्यालय को माल की आपूर्ति या उसके लिए किसी कार्य के निष्पादन के लिए कोई संविदा स्वीकार करता है:
परन्तु इस धारा की कोई बात किसी शिक्षक द्वारा किसी पारिश्रमिक को स्वीकार करने या महाविद्यालय द्वारा संचालित किसी परीक्षा के संबंध में किए गए किसी कर्तव्य के लिए या महाविद्यालय के किसी प्रशिक्षण इकाई या हॉल या छात्रावास के अधीक्षक या वार्डन के रूप में या प्रॉक्टर या ट्यूटर के रूप में या महाविद्यालय के संबंध में समान प्रकृति के किसी कर्तव्य के लिए लागू नहीं होगी।
स्पष्टीकरण.- ‘रिश्तेदार’ शब्द का वही अर्थ होगा जो धारा 20 के स्पष्टीकरण में दिया गया है।
- संबद्ध और एसोसिएटेड कॉलेजों का निरीक्षण आदि
1) राज्य सरकार को यह अधिकार होगा कि वह किसी सम्बद्ध या सहयुक्त महाविद्यालय का, जिसके अंतर्गत उसके भवन, प्रयोगशालाएं और उपकरण भी हैं, तथा उसके द्वारा संचालित या किए गए परीक्षाओं, अध्यापन और अन्य कार्यों का, ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा, जैसा वह निर्देश दे, निरीक्षण कराए या ऐसे महाविद्यालय के प्रशासन और वित्त से संबंधित किसी मामले के संबंध में जांच कराए।
(2)
जहां राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन निरीक्षण या जांच कराने का निर्णय लेती है, वहां वह इसकी सूचना प्रबंध को और प्रबंध द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि को देगी और जहां प्रबंध प्रतिनिधि नियुक्त करने में असफल रहता है, वहां महाविद्यालय का प्रधानाचार्य ऐसे निरीक्षण या जांच में उपस्थित हो सकेगा और उसे प्रबंध की ओर से सुनवाई का अधिकार होगा, किन्तु कोई विधि व्यवसायी ऐसे निरीक्षण या जांच में महाविद्यालय की ओर से उपस्थित नहीं होगा, अभिवचन नहीं करेगा या कार्य नहीं करेगा।
(3)
उपधारा (1) के अधीन निरीक्षण या जांच करने के लिए नियुक्त व्यक्ति या व्यक्तियों को शपथ पर साक्ष्य लेने और साक्षियों को हाजिर कराने तथा दस्तावेजों और भौतिक वस्तुओं को प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करने के प्रयोजनार्थ [सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908,] [अब दंड प्रक्रिया संहिता, 1973] के अधीन वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी और वह दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 की धारा 480 और 482 के अर्थ में सिविल न्यायालय समझा जाएगा और उसके या उनके समक्ष कोई कार्यवाही भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाही समझी जाएगी।
(4)
राज्य सरकार ऐसे निरीक्षण या जांच के परिणाम को प्रबंधन को सूचित कर सकती है और की जाने वाली कार्रवाई के संबंध में निर्देश जारी कर सकती है और प्रबंधन ऐसे निर्देशों का तत्काल अनुपालन करेगा।
(5)
राज्य सरकार उपधारा (4) के अधीन प्रबंधन को किए गए किसी भी संचार के बारे में कुलपति को सूचित करेगी।
(6)
राज्य सरकार किसी भी समय, ऐसे निरीक्षण या जांच के संबंध में किसी संबद्ध या सहयुक्त महाविद्यालय के प्रबंधन या प्राचार्य से कोई भी जानकारी मांग सकती है।