- मानसिक रूप से दिव्यांगों को अब सम्मानजनक जीवन का अधिकार दिलाने की कवायद
मानसिक स्वास्थ्य पर बदले नजरिया, विक्षिप्त नहीं, समझने योग्य हैं ये लोग: जिलाधिकारी
भ्रांतियाँ तोड़ें, समझ बढ़ाएँ… मानसिक रोग कोई अभिशाप नहीं बल्कि उपचार योग्य स्थिति है
बागपत प्रशासन की पहल पर अब लगेगा विशेष कैंप, एक कोने पर होगी जाँच तो दूसरे पर बनेगा प्रमाण पत्र
टेली-मानस हेल्पलाइन 14416 से मिलेगी हर ज़रूरतमंद को तत्काल मदद
बागपत दिनांक 15 नवंबर 2025 – मानसिक स्वास्थ्य पर समाज की चुप्पी अब टूट रही है। जिलाधिकारी अस्मिता लाल के निर्देश पर बागपत ज़िले में मानसिक दिव्यांगता से प्रभावित लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण और सराहनीय पहल शुरू की गई है। अब प्रत्येक माह के तीसरे सोमवार को जिला चिकित्सालय परिसर में विशेष शिविर लगाकर पात्र व्यक्तियों की जाँच की जाएगी और मानसिक दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे।
इस शिविर में ऐसे व्यक्ति लाभ प्राप्त कर सकेंगे, जिनमें बौद्धिक विकास में धीमापन, सामाजिक अनुकूलन क्षमता में कमी या अपेक्षित आयु के बाद भी दैनिक कार्यों जैसे नहाना, वस्त्र धारण करना, शौचालय का उपयोग आदि के लिए अभिभावकों पर निर्भरता पाई जाती है। इसके साथ ही उन व्यक्तियों की भी जाँच की जाएगी, जिनमें सीखने में विशिष्ट अक्षमता (एसएलडी) मौजूद हो, जिसके कारण उन्हें पढ़ने, लिखने, शब्दों को पहचानने या गणितीय गणनाओं को समझने में कठिनाई होती है। इसके अलावा स्किज़ोफ्रेनिया, ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी), बाइपोलर अफेक्टिव डिसऑर्डर जैसी गंभीर मानसिक अवस्थाओं से प्रभावित वे लोग भी शिविर में शामिल हो सकेंगे।
जाँच प्रक्रिया को अधिक वैज्ञानिक और पारदर्शी बनाने के लिए गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा से विशेषज्ञ चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की टीम प्रत्येक माह निर्धारित दिवस पर इस कैंप में जिला चिकित्सालय में उपस्थित रहेगी। यह टीम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार आवश्यक मूल्यांकन कर पात्र व्यक्तियों को प्रमाण पत्र उपलब्ध कराएगी। प्रमाण पत्र मिलने से लाभार्थियों को विभिन्न सरकारी योजनाओं, पेंशन, शिक्षा एवं रोजगार में आरक्षण सहित कई कल्याणकारी सुविधाओं का लाभ लेने में सहायता मिलेगी।
इस शिविर ने बागपत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक नई सोच जगाई है। अब लोग “विक्षिप्त” नहीं कहेंगे, बल्कि “समझने योग्य” कहेंगे। यह बदलाव केवल शब्दों का नहीं, दृष्टिकोण का है, जो दर्शाता है करुणा, सहानुभूति और स्वीकार्यता की ओर बढ़ता हुआ बागपत। अक्टूबर माह में भी ग्रेटर नोएडा की गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी और गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की 22 विशेषज्ञों की टीम ने ज़िलेभर से आए बच्चों की जाँच कर मानसिक दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाए थे।
जिला प्रशासन का कहना है कि आमतौर पर मानसिक रूप से पीड़ित लोग एवं उनके परिजन इस समस्या के बारे में बताने और बात करने से बचते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। मानसिक समस्याओं का समाधान जिला संयुक्त चिकित्सालय में उपलब्ध कराया जा रहा है, जिसके क्रम में इस विशेष कैंप के आयोजन से मानसिक दिव्यांगता प्रमाण पत्र सुगमता से बन सकेंगे। गाज़ियाबाद, मेरठ एवं अन्य ज़िलों में जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।
यह मानसिक दिव्यांगता के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाने और प्रभावित व्यक्तियों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। जिलाधिकारी ने कहा कि हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी ज़रूरतमंद व्यक्ति प्रमाण पत्र के अभाव में योजनाओं से वंचित न रहे।
इस मुहिम के साथ बागपत ज़िला मानसिक स्वास्थ्य और दिव्यांगता अधिकारों को लेकर एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इस अभियान से अनेक परिवारों को राहत मिलेगी और ज़रूरतमंद नागरिक शासन की कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित होकर अधिक सम्मान और आत्मविश्वास के साथ जीवन जी सकेंगे।
इसे “बागपत मॉडल ऑफ इंटीग्रेटेड मेंटल हेल्थ सपोर्ट” के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसके तहत प्रशासन, चिकित्सा संस्थान और समाज — तीनों मिलकर मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक साझा तंत्र बना रहे हैं। उद्देश्य यह है कि किसी भी बच्चे या परिवार को अब मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं के लिए अपने ज़िले से बाहर न जाना पड़े। अब तक मानसिक विकलांगता के प्रमाण पत्रों के लिए बागपत से रेफर होकर परिवारों को मेरठ या दिल्ली जाना पड़ता था, जहाँ न केवल खर्च बढ़ता था बल्कि असुविधा भी होती थी।
डिप्टी सीएमओ मानसिक विभाग नोडल अधिकारी डॉक्टर रोविन ने बताया कि बागपत प्रशासन का उद्देश्य केवल प्रमाण पत्र देना नहीं, बल्कि इन सभी लोगों के लिए एक सहयोगी और सम्मानजनक माहौल बनाना है, जहाँ वे आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकें। इस शिविर में कई परीक्षण होंगे जिसमे समाधान आधारित परामर्श: ऐसा परीक्षण है जिसमें रोग के बजाय समाधान पर ध्यान दिया जाता है। इस परीक्षण में बच्चे से उसकी कमी या परेशानी नहीं, बल्कि उसकी ताकत और संभावनाओं पर बात की जाती है। यह बच्चों में आत्मविश्वास और आत्म-समझ को बढ़ाता है।
बुद्धिमत्ता परीक्षण (मालिन स्केल): भारतीय
बच्चों के लिए विकसित एक बौद्धिक परीक्षण है। यह बच्चे की बुद्धि, स्मृति, भाषा और सोचने की गति को मापता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बच्चा किन क्षेत्रों में सक्षम है और कहाँ उसे सहायक शिक्षा या उपचार की आवश्यकता है। यह परीक्षण विशेष रूप से ऑटिज़्म, एडीएचडी या लर्निंग डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों की पहचान में अत्यंत उपयोगी है। विनलैंड सामाजिक परिपक्वता परीक्षण: यह दिखाता है कि बच्चा अपने दैनिक कार्य, सामाजिक व्यवहार और आत्मनिर्भरता के स्तर पर कहाँ खड़ा है। कई बार बच्चे बोलते कम हैं, लेकिन समझते बहुत हैं — यह ऐसे ही बच्चों की अदृश्य क्षमताओं को उजागर करता है।
जिलाधिकारी ने कहा कि ऑटिज़्म, एडीएचडी, डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी डिसऑर्डर जैसे रोग कोई कमी नहीं, बल्कि विविधता का रूप हैं। इन लोगों को केवल थोड़ा अधिक स्नेह, समझ और सहयोग चाहिए। यह भी हमारे समाज का हिस्सा है। परिवार में किसी एक सदस्य का मानसिक रोग से पीड़ित होना आर्थिक, सामाजिक और अन्य कई रूप में चिंता का कारण बनता है। ऐसे परिवारों एवं पीड़ित लोगों के प्रति समाज को ज़िम्मेदारी भाव दिखाना आवश्यक है। मानसिक जाँच शिविर की जानकारी ज़रूरतमंदों तक पहुँचाएँ। मानसिक रोग किसी भी परिवार में हो सकता है। इसे छुपाने की नहीं, समझने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि यह न दैवीय प्रकोप है, न जादू-टोना, बल्कि यह एक चिकित्सकीय स्थिति है। समाज को संवेदना से जवाब देना होगा, दूरी से नहीं।
जानें कब लें डॉक्टर की मदद: यदि किसी व्यक्ति में यह संकेत दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए: बार-बार उदासी या चिंता महसूस होना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, अचानक व्यवहार में बदलाव, ऐसी चीज़ें देखना या सुनना जो वास्तविक न हों, आत्महत्या के विचार आना, सामाजिक मेलजोल से दूरी बनाना। ऐसे में टेली-मानस हेल्पलाइन 14416 (24×7) पर कॉल किया जा सकता है। यह सेवा पूरी तरह गोपनीय, सरल और निःशुल्क है।
सूचना विभाग बागपत