बागपत में सांस्कृतिक चेतना का नया उदय, भव्य स्तर पर आयोजित हुए कार्यक्रमों से श्रद्धा और समरसता को मिला बढ़ावा
अखंड रामायण पाठ से समाज में प्रेम, करुणा, नैतिकता और एकता जैसे मूल्यों का विस्तार, बच्चों से लेकर युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों तक सभी हुए शामिल
बागपत, 07 अक्टूबर 2025 – संस्कृति, भक्ति और मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत दृश्य मंगलवार को पूरे बागपत जनपद में देखने को मिला, जब महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर जिले के सभी प्रमुख मंदिरों में अखंड रामायण पाठ का भव्य आयोजन हुआ।
शासन के निर्देशानुसार और जिलाधिकारी अस्मिता लाल के मार्गदर्शन में हुए इस आयोजन ने न केवल धार्मिक आस्था का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया, बल्कि समाज में प्रेम, करुणा, नैतिकता और एकता जैसे मानवीय मूल्यों के प्रसार का भी माध्यम बना।
मुख्य कार्यक्रम बालैनी के प्राचीन महर्षि वाल्मीकि मंदिर में संपन्न हुआ, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। हिंडन नदी किनारे स्थित यह वही ऐतिहासिक स्थल है जहाँ त्रेता युग में महर्षि वाल्मीकि जी ने तपस्या की थी और लव-कुश को शस्त्र एवं शास्त्र विद्या में पारंगत कराया था।
माता सीता ने भी इसी आश्रम में आश्रय लिया था, और लव-कुश का जन्म भी इसी पावन धरा पर हुआ था। इस ऐतिहासिक स्मृति से जुड़ी भूमि आज भी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है।
इसके साथ ही वार्ड नंबर एक देशराज मोहल्ला बागपत के वाल्मीकि मंदिर, बाल्मीकि मोहल्ला खेकड़ा के वाल्मीकि मंदिर, और वार्ड नंबर एक घास मंडी बड़ौत स्थित वाल्मीकि मंदिर में भी अखंड रामायण पाठ का आयोजन हुआ।
मंदिरों में भक्ति संगीत, भजन-कीर्तन और दीपदान से वातावरण पवित्रता और समरसता से भर गया। श्रद्धालु दिनभर रामायण पाठ में सम्मिलित रहे और भगवान श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लिया।
बागपत की धरती सदियों से सत्य, धर्म और सेवा की परंपरा की वाहक रही है। त्रेता युग की लव-कुश गाथा से लेकर आज तक इस जनपद ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखने का कार्य किया है।
यह आयोजन न केवल धार्मिक अनुष्ठान था, बल्कि संस्कृति और कर्तव्यबोध की पुनर्स्थापना का पर्व भी बन गया। जब सुबह की पहली किरण के साथ रामायण के मंत्र मंदिरों में गूंजे और शाम होते ही दीपों की लौ से प्रांगण जगमगाए, तब बागपत की यह धरती भक्ति और संस्कृति के मिलन की प्रतीक बन उठी।
इस अवसर पर प्रत्येक मंदिर में स्थानीय नागरिकों, महिलाओं, युवाओं और भजन मंडलियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। समाज के सभी वर्गों ने मिलकर वाल्मीकि जयंती को एक सामूहिक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया। हर ओर “जय श्रीराम” के जयघोष गूंजते रहे। बच्चों में रामायण की कथाओं के प्रति उत्साह दिखा तो युवाओं ने वाल्मीकि जी के जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही।
जिलाधिकारी अस्मिता लाल द्वारा पूर्व में जारी निर्देशों के अनुसार सभी आयोजन स्थलों पर साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था और सुरक्षा प्रबंध की विशेष देखरेख की गई। स्थानीय प्रशासन और संस्कृति विभाग के समन्वय से कार्यक्रम श्रद्धा और अनुशासन के साथ सम्पन्न हुआ।
महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का प्रथम कवि माना जाता है। उनकी रचना रामायण न केवल एक ग्रंथ, बल्कि भारतीय जीवन दर्शन की आत्मा है। बागपत में आयोजित यह अखंड रामायण पाठ इस सत्य का प्रमाण बना कि भारत की आत्मा आज भी अपनी संस्कृति, अध्यात्म और मानवीय मूल्यों से जुड़ी हुई है।
सूचना विभाग, बागपत