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अखंड रामायण पाठ से समाज में प्रेम, करुणा, नैतिकता और एकता जैसे मानवीय मूल्यों का होगा प्रचार-प्रसार

संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर सांस्कृतिक वैभव प्रदर्शित करेगा बागपत

जिलाधिकारी ने दिए निर्देश, भव्य स्तर पर संपन्न होंगे कार्यक्रम, सांस्कृतिक चेतना को मिलेगा बढ़ावा

बालैनी के प्राचीन वाल्मीकि मंदिर से जुड़ी हैं लव-कुश की जन्मस्थली की अमर गाथाएं

बागपत, 05 अक्टूबर 2025- शासन के निर्देशानुसार इस वर्ष महर्षि वाल्मीकि जयंती बागपत जिले में विशेष भक्ति और सांस्कृतिक उल्लास के साथ मनाई जाएगी। संस्कृति विभाग की पहल पर 7 अक्टूबर को जिले के सभी प्रमुख मंदिरों में महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण का अखंड पाठ आयोजित किया जाएगा। इस आयोजन का उद्देश्य समाज में प्रेम, करुणा, नैतिकता और एकता जैसे मानवीय मूल्यों का प्रचार-प्रसार करना है, जिससे नागरिकों में भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के प्रति जुड़ाव और गहरा हो सके।

जनपदभर में आयोजित होने वाली यह कार्यक्रम श्रृंखला जनपद के ऐतिहासिक एवं संस्कृतिक महत्व से भी जुड़ी है। जनपद बागपत का बालैनी गांव भी त्रेता युग की तमाम यादों को समेटे है जहां स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर में स्वयं महर्षि वाल्मीकि जी ने तपस्या की थी और लव-कुश को शस्त्र और शास्त्र विद्या में पारंगत किए थे। मान्यता है कि ताज्य होने पर सीता मैया यहीं वाल्मीकि मंदिर में रही। यहीं लव-कुश जी की जन्म हुआ था। वाल्मीकि जी ने लव-कुश को शस्त्र तथा शास्त्र विद्या में पारंगत किए थे। बागपत की पवित्र धरती को “सत्यम्, धर्मम् और सेवा” की परंपरा का वाहक माना जाता है।

जिलाधिकारी अस्मिता लाल के निर्देशन में प्रत्येक तहसील और विकास खंड स्तर पर कार्यक्रमों के भव्य आयोजन हेतु समिति गठित कर निर्देश दिए गए है जो आयोजन की तैयारी और समन्वय आदि का कार्य देखेंगी। सभी आयोजन स्थलों पर साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था सहित अन्य मूलभूत व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएगी ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

महर्षि वाल्मीकि जयंती पर सभी मंदिरों में दीपदान और भजन मंडलियों की प्रस्तुतियों से वातावरण श्रद्धा और समरसता से भरा नजर आएगा। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में सद्भाव, अनुशासन और समर्पण की भावना को भी प्रबल करता है।

जब वाल्मीकि जयंती पर बागपत की सुबह रामायण के मंत्रों से आरंभ होगी और शाम दीपों की लौ से आलोकित होगी, तब यह केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि संस्कृति, करुणा और कर्तव्यबोध की पुनर्स्थापना का दिवस होगा — जो यह संदेश देगा कि भारत की आत्मा आज भी अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है।

महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का प्रथम कवि माना जाता है। उनकी रचना रामायण भारतीय जीवन दर्शन और मानवीय मूल्यों की आधारशिला है। ऐसे में बागपत में होने वाला यह सामूहिक अखंड रामायण पाठ न केवल श्रद्धा का प्रतीक बनेगा, बल्कि युवाओं और आम नागरिकों के लिए सांस्कृतिक चेतना का एक सशक्त माध्यम भी होगा।

बागपत की लोकसंस्कृति में रामायण का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी रामलीला, झांकी, और रामकथा मंडलियों की परंपरा जीवित है। हर वर्ष दशहरा और दीपावली के अवसर पर गाँवों में वाल्मीकि रामायण के प्रसंगों का मंचन किया जाता है, जिससे नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों से जोड़ा जाता है। इस परंपरा को शासन के इस सामूहिक अखंड पाठ आयोजन से नई ऊर्जा मिलेगी।

7 अक्टूबर को जिले के मंदिरों में जब अखंड रामायण पाठ की स्वर लहरियां गूंजेंगी, दीपों से मंदिर प्रांगण जगमगाएंगे और भक्तगण भजन-कीर्तन में लीन होंगे — तब बागपत भक्ति, संस्कृति और लोकमंगल का जीवंत प्रतीक बन जाएगा। यह आयोजन जनता की भागीदारी से सजेगा और बागपत अपने सांस्कृतिक वैभव की नई पहचान स्थापित करेगा।

सूचना विभाग बागपत

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