- किसी भी आयोग चयनित नियमित प्राचार्यों को रास नहीं आया एस. एम. कॉलेज, चंदौसी
-सभी आयोग चयनित नियमित प्राचार्यों को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही कालेज छोड़कर जाना पड़ा
-कालेज छोड़कर जाने वालों में डॉ. वीरेन्द्र सिंह, डॉ. आर. बी. रावल (पूर्व सांसद), डॉ. वकुल बंसल, डॉ. ऐ. के. गुप्ता शामिल
-आयोग प्राचार्य डॉ. वकुल बंसल के मारपीट के आरोप में पूर्व प्रबंधक एवं वर्तमान प्रबंधक दोनों को ही जाना पड़ा था जेल
-वर्तमान आयोग चयनित प्राचार्य डॉ. दानवीर सिंह यादव और कॉलेज प्रबंधतंत्र के बीच भी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा
-उच्च शिक्षा निदेशक, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रबंधतंत्र के विरुद्ध कार्यवाही करने की उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित उक्त संस्तुति स्पष्टीकरण लेने और भंग करने से सम्बंधित
विस्तार
उच्च शिक्षा निदेशक, उत्तर प्रदेश द्वारा एस. एम. कॉलेज चंदौसी के प्रबंध तंत्र के विरुद्ध उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 57 एवं 58 के कार्यवाही करने की संस्तुति सहित आख्या उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित की गई है। इस संस्तुति में शासन से अनुरोध किया गया है कि माननीय न्यायालय के आदेश के क्रम में प्रकरण पर अग्रेत्तर कार्रवाई हेतु निर्णय लेना चाहे। उक्त धारा 57 प्रबंधतंत्र के खिलाफ शिकायतों के संबंध में स्पष्टीकरण मांगने से संबंधित है। यदि शासन स्पष्टीकरण से संतुष्ट न हो तो धारा 58 के अंतर्गत प्रबंध तंत्र को भंग किए जाने का प्रावधान है।
एस. एम. कॉलेज, चंदौसी में प्रबंधतंत्र एवं आयोग चयनित नियमित प्राचार्य के बीच विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। प्रबंध तंत्र और आयोग चयनित प्राचार्य के बीच जारी घमासान में दो दर्जन से भी अधिक मुकदमे जिला न्यायालय और माननीय उच्च न्यायालय में दाखिल हुए। इन मुकदमों की मार महाविद्यालय के कई शिक्षक और कर्मचारी भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से झेल रहे हैं। आयोग चयनित प्राचार्य एवं अन्य पर लगाए गए आरोपों के संबंध में उच्च शिक्षा विभाग पुलिस विभाग, विश्वविद्यालय, महिला आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग, मानवाधिकार आयोग, अनुसूचित जाति जनजाति आयोग, राजस्व परिषद आदि जगह मामले दर्ज हुए। सभी में आयोग जनित प्राचार्य को लगभग सभी जगह से दोष मुक्त कर दिया गया केवल महाविद्यालय स्तर पर हुई जांच के अलावा। यह भी बताते चले कि जाँच अधिकारी प्रबंधक के भाई थे, जो नियमानुसार जांच अधिकारी नहीं होने चाहिए थे।
वहीं दूसरी ओर, महाविद्यालय प्रबंध तंत्र एवं सोसाइटी के खिलाफ अनेक शिकायतें हुई जिनमें उच्च शिक्षा विभाग द्वारा विशेष अंकेक्षण आदि तथा विश्वविद्यालय, शासन-प्रशासन द्वारा कई जांच जारी है। सूत्रों कि माने तो महाविद्यालय के प्रबंध तंत्र द्वारा किसी भी जांच को संपन्न नहीं करने दिया जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रबंधतंत्र लगभग हर आदेश के खिलाफ माननीय न्यायालय में वाद दायर कर अपने खिलाफ होने वाली किसी भी जांच से बचने का प्रयास कर रहा है। माननीय न्यायालय में मुकदमे दायर करने के कारण इस महाविद्यालय के प्रबंध तंत्र के खिलाफ कोई भी कार्रवाई संपन्न नहीं हो पा रही है। बर्खास्त किए गए आयोग चयनित प्राचार्य डॉ. दानवीर सिंह यादव, आयोग चयनित प्राध्यापक डॉ. प्रवीण कुमार को उच्च शिक्षा विभाग के आदेश के उपरांत भी वेतन भत्तों का भुगतान नहीं करने की सूचना हैं। वहीं विश्वविद्यालय द्वारा बहाल की गई डॉ. गीता शर्मा को भी नियमानुसार वेतन/भत्तों का भुगतान नहीं रहा है। ऐसा बताया जाता है कि इन सब परिस्थितियों को देखते हुए और विश्वविद्यालय एवं शासन प्रशासन/उच्च शिक्षा विभाग के आदेशों की लगातार अवहेलना एवं जांच में सहयोग न करने के कारण ही उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा यह संस्तुति की गई बताई जाती है।
उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा दिनांक 11 सितंबर, 2025 को उच्च शिक्षा विभाग के विशेष सचिव को प्रेषित पत्र के माध्यम से एस. एम. डिग्री कॉलेज, चंदौसी, संभल के प्रबंध तंत्र के विरुद्ध वित्तीय एवं प्रशासनिक अनियमितता के संदर्भ में गंभीर आरोप लगाते हुए पत्र भेजा है। जिसमें प्रमुख रूप से उसे शिक्षा विभाग द्वारा वांछित सूचना का ऑपरेशन न कराने, वंचित दस्तावेजों को उपलब्ध न कराने, कालेज में उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा भेजी गई विशेष संप्रेषण टीम को कोई भी अभिलेख, साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराने आदि सम्बन्धी आरोप शामिल हैं।
इसके अलावा इस पत्र में यह भी कहा गया है कि उच्च शिक्षा निदेशालय के निर्देश पर प्रकरण में क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, बरेली को अपनी अध्यक्षता में समिति का गठन करते हुए जांच आख्या उपलब्ध कराए जाने के निर्देश प्रदान किए गए थे। उक्त प्रदत्त निर्देश के अनुक्रम में क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, बरेली द्वारा आख्या उपलब्ध कराई गई है कि महाविद्यालय प्रबंध समिति द्वारा संबंधित कार्मिकों के वेतन/जीवन निर्वाह भत्ता प्रदान किए जाने वाले संबंधित आदेशों की अनवरत अहेलना करते हुए भुगतान किए जाने से इनकार किया जा रहा है जबकि जांच समिति द्वारा जीवन निर्वाह भत्ता प्रदान किया जाना नियम के अनुसार बताया गया है।
उच्च शिक्षा विभाग, विश्वविद्यालय के आदेशों की लगातार अवहेलना के कारण उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा उत्तर प्रदेश को प्रेषित पत्र में उल्लेख किया गया है कि महाविद्यालय की प्रबंध समिति द्वारा विशेष संप्रेषण में अनवरत विभिन्न पत्रों के क्रम में अभिलेख प्रस्तुत न करना जो कि राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 की धारा 40 उप धारा 1 से लेकर 6 के अंतर्गत बाध्यकारी है तथा समिति की स्थलीय जांच अवधि में सहयोग प्रदान न करते हुए माननीय न्यायालय में आयोजित रिट याचिका संख्या का उदाहरण देकर प्रकरण मान्य न्यायालय में से आच्छादित होने के कारण जांच से मना किया जाना समीचीन नहीं है, क्योंकि उक्त याचिका में माननीय न्यायालय द्वारा विशेष सम्प्रेषण किए जाने में किसी प्रकार की रोक या स्थगन आदेश पारित नहीं किया गया है। यह भी कहा गया है कि प्रकरण में क्षेत्रीय कार्यालय की जांच आख्या से भी महाविद्यालय द्वारा अनवरत प्रशासनिक आदेशों की भी अवहेलना की जा रही है। उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा यह भी अवगत कराया गया है कि कुलपति-गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय, मुरादाबाद द्वारा जिलाधिकारी संभल की जांच रिपोर्ट के आधार पर उत्तर प्रदेश शासन को इस महाविद्यालय के विरुद्ध उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 की धारा 58 के अंतर्गत प्राधिकृत नियंत्रक नियुक्त किए जाने की संस्तुति की गई है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा जगत में महाविद्यालय प्रबंध समिति द्वारा शासन प्रशासन/उच्च शिक्षा विभाग, विश्वविद्यालय के आदेशों की लगातार अवहेलना के चलते हुए ही जहां शिक्षा जगत एवं क्षेत्र में शासन की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लग रहे थे, वही पीड़ितों को भी सभी जगह से क्लीन चिट मिलने के बाद भी न्याय नहीं मिल रहा है। ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा एस. एम. कॉलेज, चंदौसी प्रबंध समिति के खिलाफ जल्दी ही कठोर निर्णय लिए जाने की संभावना जताई जा रही है। प्रकरण के जानकार एवं न्यायिक क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विद्वानों का यह भी कहना है कि माननीय न्यायालय अन्याय के खिलाफ तो संरक्षण दे सकता है, किंतु अन्याय करने की छूट नहीं दे सकता। ऐसी स्थिति में माननीय न्यायालय द्वारा भी शायद ही कोई राहत इस महाविद्यालय की प्रबंध समिति को प्राप्त हो सके। यह भी जानकारी मिल रही है कि बिना पर्यवेक्षक के प्रबंध समिति के चुनाव कराये जाने के कारण अभी तक विश्वविद्यालय से वर्तमान प्रबंध समिति को अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ है। यह अनुमोदन एक वैध प्रबंध समिति होने के लिए अनिवार्य बताया जाता है।
यह भी बताते चले कि आयोग चयनित नियमित प्राचार्यों को एस. एम. कॉलेज, चंदौसी कभी भी रास नहीं आया। सभी आयोग चयनित नियमित प्राचार्यों को प्रबंधतंत्र के सामने घुटने टेकने पड़े और उन्हें अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही कालेज छोड़कर जाने को मजबूर होना पड़ा। कालेज छोड़कर जाने वाले आयोग चयनित प्राचार्यों में डॉ. वीरेन्द्र सिंह, डॉ. आर. बी. रावल, डॉ. वकुल बंसल, डॉ. ऐ. के. गुप्ता शामिल हैं। आयोग से आये प्राचार्य डॉ. वकुल बंसल के साथ मारपीट एवं जान लेवा हमले के आरोप वर्तमान प्रबंधक एवं पूर्व प्रबंधक (वर्तमान प्रबंधक के पिता) दोनों को ही जेल जाना पड़ा था। वर्तमान में भी आयोग चयनित प्राचार्य डॉ. दानवीर सिंह यादव और कॉलेज प्रबंधतंत्र के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। आरोपों प्रत्यारोपों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस विवाद में जहाँ कई स्टाफ मोहरा बन गए है तो कुछ अनावश्यक ही कूटे जा रहे हैं। इसके दुष्परिणाम विद्यार्थियों, अभिभावकों, स्टाफ आदि को भुगतने पड़ रहे हैं। इस विवाद में वर्तमान आयोग चयनित प्राचार्य एवं पीड़ित स्टाफ का भविष्य भी काफी हद तक शासन द्वारा अपने अधिकारों के प्रयोग करने एवं कठोर निर्णय लेने पर ही निर्भर करेगा। अन्यथा यह वायरस विस्तार कर अन्य शिक्षण संस्थानों में भी फ़ैल सकता है। जिसके भयावह परिणाम शिक्षा जगत एवं समाज को भुगतने पड़ेंगें।
उम्मीद की जा रही है कि उत्तर प्रदेश शासन इस कॉलेज के विवाद से तंग आ गया है और इस मामलें में कोई कठोर निर्णय लेने का मन बना चुका है। जल्दी ही कोई न कोई निर्णय लिए जाने की सम्भावना बतायी जा रही है। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि भविष्य में क्या होने वाला है? किंतु पीड़ितों को न्याय देने हेतु एवं इस महाविद्यालय की प्रबंध समिति के खिलाफ गंभीर शिकायतों के मद्देनज़र अब शासन सत्ता को अपने अधिकारों का प्रयोग करना ही पड़ेगा।