राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने के लिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया।
उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी। असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आठ-दस वर्ष तक जीवित रहे और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरे।
वह हर वर्ष अपने गांव जाते थे और अपने परिजनों से मिला करते था, गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक “तांत्या टोपे की कथित फांसी” दस्तावेज क्या कहते है?
श्री सोलंकी ने अपनी पुस्तक में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है।
पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित “हमारा देश” नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी। फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था, जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया।
तांत्या टोपे स्मारक समिति ने “तांत्या टोपे के वास्ते से” सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है।
इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है। उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था।
सन 1926 ई. में लन्दन में एडवर्ड थाम्पसन की पुस्तक “दी अदर साइड ऑफ़ दी मेडिल” छपी थी। इस पुस्तक में भी तांत्या टोपे की फांसी पर शंका प्रकट की गई है।
इससे सिद्ध होता है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे के साथ कभी भी विश्वासघात नहीं दिया और न ही उन्हें अंग्रेजों द्वारा कभी जागीर दी गई थी। पर अफ़सोस कुछ इतिहासकारों ने बिना शोध किये उन पर यह लांछन लगा दिया।
वंदेमातरम् 🚩