…..आखिर कहां जा रहा है आज का मीडिया?
विश्व मीडिया और सामुदायिक विवेक चकित है। वह दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कहलानेवाली आबादी के मीडिया को एक आरोपी की राज्य द्वारा ग़ैरक़ानूनी संभावित हत्या कराये जाने का उत्सव मनाते देख रहा है। देख रहा है कि मीडिया राज्य को हत्या करने के लिए उकसा रहा है और समाज टीवी चैनलों के स्क्रीन पर इस कृत्य के पल पल की रिपोर्टिंग को लेकर उत्तेजित है ! वह पेशाब करने के लिए उतरा, पेशाब कर रहा है तो वह भी स्क्रीन पर चल रहा है, कैमरा क़ैद कर रहा है।
इसी सब की आलोचनात्मक विवेचना जब सारी दुनिया के मीडिया में प्रसारित होगी / हो रही है तब देशभक्ति के कंबल ओढ़कर उपदेश झाड़े जाएँगे और हम को किसी से नसीहत दरकार नहीं का घमंड पसारा जायेगा!
यह प्रेतलीला फ़िलहाल ट्विटर पर नं 1 पर ट्रेंड कर रही है!
सोचिए हमने सचमुच पिछले आठ नौ बरस में ही पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान उगांडा आदि से बढ़त हासिल कर ली है!
हम सरकार द्वारा ग़ैरक़ानूनी हत्या किये जाने का सर्वसम्मति से सार्वजनिक जश्न मनाने वाले दुनिया के पहले औघड़ देश बन गये हैं!
मीडिया का मूत काल
TRP की ख़ातिर फील्ड रिपोर्टर्स को आदेश मिला है कि पूर्व सांसद बाहुबली अतीक़ की मूत की धार से करोड़ों के विज्ञापन मिलेंगे। इसलिए धार पर फोकस रखो। यूं ही इसे गोदी मीडिया नहीं कहा गया है। देश में यह पहली बार हो रहा है कि उच्च सदन के एक भूतपूर्व सदस्य की मूत की धार लाइव दिखाई जा रही है।
देश में तमाम दूसरे मुद्दे हैं परंतु मीडिया को बस अतीक़ की मूत से मतलब है।
अतीक़ की अपराध गाथा पिछले महीने भर से चल रही है। और इन्हीं दिनों बारिश/ओले/बर्फ से करोड़ों किसान प्रभावित हुए. उनकी ख़बर कहीं नहीं चली। मीडिया ने हमारे सोचने एवं विचार करने की पूरी प्रक्रिया पर अतिक्रमण कर लिया है।