दिनांक 23.12.2024 को मंडोला किसान आंदोलन के किसान दिल्ली किसान घाट पहुंचकर के चौधरी चरण सिंह जी की जयंती मनाने का प्लान था मंडोला सत्याग्रह किसान आंदोलन काफी साल से चल रहा है किसनो की भूमि धारा 17 लगा करके जबरदस्ती अधिग्रहण की भाजपा के जनरल वीके सिंह ने धरना चालू करवाया लेकिन सत्ता आने के बाद किसानों को उनका हक दिलाने के लिए सब भूल करके बैठ गए हैं और किसान आज अर्धनग्न होकर के नई दिल्ली के लिए कुच कर रहा था जिस पर की योगी की तानाशाह पुलिस ने उनको नहीं जाने दिया और ट्रॉनिका सिटी थाने के समीप जाकर के सड़क पर रेंगते हुए लेट लेट कर चलने लगे तब भी पुलिस ने वहां जाने नहीं दिया उसके बाद पुलिस प्रशासन ने चौधरी चरण सिंह जी की जयंती वहीं नेशनल हाईवे 709बी पर ही मनाने की व्यवस्था की और आवास विकास के अधिकारियों को बुलाकर के उनकी समस्या का समाधान करने के लिए दो दिन का समय मांगा जिस पर किसानों में और आवास विकास और पुलिस प्रशासन के बीच सहमति बनी सुरक्षा के तहत किसानों को वापस उनके सत्याग्रह धरने पर वापस ले जाया गया
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हक अधिकार मांगोगे तो कुटोगे-चंटोगे, झूठे मुकदमों मैं फसाएंगे और ये घरो पर बुलडोजर भी चलवाएंगे, आवाज़ उठाने की ताक़त नहीं तो आवाज़ उठाने वालों की ताक़त बनों। वरना बर्बादी इंतज़ार कर रही है।जैसे कल सहारनपुर में कश्यप समाज की एक अपने हक अधिकार को लेकर पंचायत की गई थी,सहारनपुर में कश्यप महापंचायत में नौजवान युवा साथियों पर पुलिस प्रशासन द्वारा लठ बरसाया गया वह बहुत निंदनीय हैं। यह आगाज है यह क्रांति रुकनी नहीं चाहिए।तुम्हारे पास देने को इन बच्चों को कुछ भी नहीं है इनका भविष्य खराब करना बेरोजगारी का आलम आरक्षण इस समाज के युवाओं को बर्गलाकर हिंदू हिंदुत्व की पुड़िया देकर इससे वोट लेकर सरकार बनाई और इनके ऊपर जाति जुल्म कर रहे हैं उखाड़ फेंको इस सरकार को।5000 बर्षोंं से समुद्रों, नदियों में, उनकी सतह छूने वाले, लम्बी समुद्रीं यात्रा का साहस करने वाले, खुंखार समुद्री जानवरों का सामना करने वाले, आज कहां खड़े है। कम से कम नेवी में तो वर्चस्व होता ही।पर नहीं। भारत के हिंदू धर्म के चार पैरोकार,कहते हैं कि मूल में क्षत्रिय ही सैनिक हो सकता है। और अगर यदि कोई व्यवस्था की गई है,तो वह वैकल्पिक है। वैकल्पिक व्यवस्था से ही भारत में अव्यवस्थाएं हो रहीं हैं। तो फिर हिन्दू राष्ट्र में हमारा आपका कौन सा काम है और दाम क्या है। क्या धीवर, रायकवार, केवट, मल्लाह, मांझी, बिंद, गोंड, कहार, निषाद, कीर, कश्यप, उस मूल व्यवस्था में हैंहजारों वर्षों से चले आ रहे शोषक वर्ग के सामाजिक और धार्मिक कुचक्र के दूरगामी परिणामों से अचेत पड़ा कश्यप निषाद समाज अपने विघटित स्वरूप की स्वीकारोक्ति की यातना से ग्रसित रहा है ,इसके कई कारण हो सकते है किंतु सबसे प्रमुख कारण है महापुरुषों के विचारो की समझ और अनुसरण से परहेज़। यही आशंका व्यक्त करता हूं कि कश्यप समाज का बहुस्तरीय स्वरूप ही अपने अधिकार प्राप्त करनॆ में बाधक है और हुआ। संघर्ष लगभग ठहर गया है और समाज नेतृत्वहीन है बाद में कुछ जुगनू झिलमिलायेगें जरूर, लेकिन चाटुकारिता की लौ में परवान चढ़ते हैं। कश्यप समाज के लिये संघर्ष का शून्य काल है, मेरा मानना है कि कश्यप समाज के शोषण का अंत राजनैतिक सत्ता के बिना सम्भव नहीँ है ,इस विचार को ध्यान में रखकर एक देशव्यापी सामाजिक संगठन की स्थापना करके जिसके माध्यम से राजनैतिक सत्ता की पहुँच का मार्ग प्रशस्त हो सकता है कश्यप समाज का राजनैतिक वर्चस्व देश के सीमित भूभाग पर नहीँ देश के समस्त भूभाग पर होना चाहिए। अब कश्यप समाज को स्वयं तय करना है कि अपने विघटित स्वरूप को राजनैतिक शक्ति में रूपान्तरित करनॆ को किस हद तक उपयोग में कर सकता है।इस सरकार ने तो बार बार यह सिद्ध किया है कि उसे हिंदुओं की कथित उच्च तथा संपन्न जातियों उनमें भी वे जो धन धान्य से पहले से ही मजबूत हैं की तरक्की और विकास के अलावा बाकी सबको हिंदू हिंदुत्व के नाम पर बेवकूफ बनाये रखना है।जब तक तर्कों विचारों सहित कश्यप वर्गीय पिछड़ों में इस मनुवाद से ग्रसित सरकार की इस कारगुजारी को भी उजागर करना रणनीति का हिस्सा हमारे युवा नौजवानों को बनाना चाहिए।कश्यप बिरादरी का नौजवान युवा हिंदुत्व हिंदू मनुस्मृति के मुआशरे में रहते हैं जहां वे ड्रामे देख कर रोते-रोते कुटते हैं पिटते हैं_और हकीकत देख कर कहते हैं सब ड्रामा है। निकृष्ट नालायक कहीं के।